35ए वही अनुच्छेद था, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर के गैर-नागरिकों को लोकसभा चुनाव में वोट करने का अधिकार तो था, लेकिन वे विधानसभा चुनाव में वोट नहीं डाल सकते थे। अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी होते ही घाटी से 35ए भी हट गया है। राज्य में अब परिसीमन के आधार पर विधानसभा सीटें नए सिरे से तय होंगी। 87 सीटों वाली विधानसभा से लद्दाख की 4 सीटें हटाने के बाद भी 7 सीटें और बढ़ सकती हैं। वहीं, साल के अंत तक होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट अपडेट होगी। विशेषज्ञों की मानें तो अनुच्छेद 35ए के हटने का असर इसमें देखा जा सकता है और वोटरों की संख्या में 10% का इजाफा हो सकता है।
अनुच्छेद 35-ए के तहत जम्मू-कश्मीर के गैर-नागरिक न तो राज्य में स्थायी रूप से बस सकते थे, न वहां संपत्ति खरीद सकते थे और न ही पंचायत से लेकर विधानसभा चुनाव में वोट डाल सकते थे। उन्हें सिर्फ लोकसभा चुनाव में वोट डालने का अधिकार मिल रहा था। 2014 के विधानसभा चुनाव में 72.59 लाख वोटर थे। 48.17 लाख वोटरों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 78.44 लाख वोटर थे। 35.52 लाख वोटरों ने मताधिकार का प्रयोग किया।
वोटरों की संख्या को लेकर विशेषज्ञों का भी अलग-अलग आकलन है। उनका मानना है कि नई वोटर लिस्ट में मतदाताओं की संख्या 7 लाख से 15 लाख के बीच बढ़ सकती है।
राजनीतिक विश्लेषक के. विक्रम राव के मुताबिक, अब दूसरे राज्य से आकर जम्मू-कश्मीर में किन्हीं कारणों से छह महीने से अधिक समय से रह रहे लोगों को भी वोटर लिस्ट में जुड़ने का अधिकार मिलेगा। अनुमान है कि इस वजह से जम्मू-कश्मीर में 10% यानी करीब 7 लाख वोटर्स बढ़ेंगे।
संविधान विशेषज्ञ और सुप्रीम कोर्ट के वकील डीके दुबे बताते हैं कि दोबारा वोटर लिस्ट अपडेट होने के बाद करीब 15 लाख वोटर ऐसे नए जुड़ेंगे। इनमें दलित, रिफ्यूजी, गोरखा और वे महिलाएं भी शामिल होंगी, जिन्होंने राज्य से बाहर शादी की थी।
जम्मू-कश्मीर अध्यन केंद्र के मप्र-छत्तीसगढ़ के संयोजक डॉ. राघवेंद्र शर्मा के मुताबिक, आजादी के बाद जो लोग पाकिस्तान से भारत आए और ऐसे दलित जो विशेष मकसद से जम्मू भेजे गए थे। उन्हें 35-ए की वजह से वहां का नागरिक नहीं माना गया। उस समय इनकी संख्या ढाई लाख से तीन लाख के आसपास थी। अब अनुमान है कि इनकी संख्या 12 लाख या उससे ज्यादा भी हो सकती है।
विश्लेषक के. विक्रम राव कहते हैं कि अनुच्छेद 370 और 35-ए हटने से जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ा बदलाव वोटर्स के रूप मे होगा, जिसकी अभी कोई चर्चा नहीं कर रहा है। जम्मू-कश्मीर में 10% वोटर्स बढ़े तो इसका ज्यादा फायदा भाजपा को ही मिलने की संभावना है।
इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का वोट शेयर 23.2% था जो 2019 के लोकसभा में लगभग दोगुना बढ़कर 46.40% पहुंच गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में उसका वोट शेयर 32.6% था। भाजपा ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य में 3-3 सीटें बरकरार रखी थीं। ये सीटें जम्मू, उधमपुर और लद्दाख हैं। लद्दाख में करीब पौने दो लाख वोटर्स हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को कुल 16,48,041 वोट मिले। इनमें अगर लद्दाख से भाजपा को मिले 42,914 वोट हटा दें तब भी भाजपा के वोट शेयर पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ेगा।
परिसीमन और वोटरों के हिसाब से किस तरह गणित बदल सकता है?
जम्मू-कश्मीर में पहले 87 विधानसभा सीटें थीं। लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद 4 सीटें कम हो जाएंगी। बची हुई 83 सीटों की संख्या परिसीमन के बाद 90 तक पहुंचने के आसार हैं। यानी विधानसभा में 7 सीटें बढ़ सकती हैं। अभी पूरे कश्मीर में 46 विधानसभा और तीन लोकसभा सीटें हैं। जम्मू में 37 विधानसभा और दो लोकसभा सीटें हैं। 24 विधानसभा सीटें और हैं, जो पीओके की मानकर रखी गई हैं।