हे नाथ , क्यों गाडिव पर था तीर चढ़ा,
  क्यों रक्त रंजित करने को धरती, था काल अड़ा, 
 क्यों रूदन और वेदना से भरी धरा,
 किसी का पुत्र तो किसी का भाई मरा ।
 जब तुम कोई लीला कर सकते थे,
लाखों की पीड़ा हर सकते थे,
रोकी क्यों नहीं तुमने गति काल की,
तुम्हारी ही लीला है जो यह धरती लाल की।
   
कृष्ण जी बोले :
  अर्जुन मैं ही धर्म सिखाने आता हूं,
  मैं  ही अधर्म मिटाने आता हूं,
  पाप को मिटाने धरती पर,
  कभी राम,कभी अर्जुन बन तीर चलाने आता हूं ।
  
  मैं ही श्वेत , मैं ही श्याम हूं,
  मैं ही कृष्ण , मैं ही राम हूं,
  मैं ही नील , मैं ही पाताल हूं,
   मैं ही जीवन और मैं ही काल हूं।
   मैं ही छल , मैं ही माया ,
   मैं ही तपन और मैं ही छाया,
    मैं ही आदी, में ही अन्त,
    मैं ही भक्त और मैं ही सन्त।
   
    जब जब मोह माया हावी हो जाती है,
   जब जब मानवता करूणा में चिल्लाती है ,
   तब तब मैं काल बन चढ़ आता हूं,
   किसी अजुन का सारथी बन, धर्म की  पताका फहराता हूं।


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