बाला हर उस शख्स के दर्द की कहानी है जिसने अपने सर से गिरते बालों को बड़ी ही हसरत से देखा है,कमउम्र में बालों के गिर जाने के दर्द को आयुष्मान ने उकेरा है और अपनी माहिर एक्टिंग के अंदाज़ से दुनिया को इस दर्द से रूबरू कराया है। कब एक अखबार का विज्ञापन पूरी एक कहानी को लेकर चलता है और हलके फुल्के मज़ाक के साथ बड़ी ही ख़ूबसूरती से इस कहानी को आगे बढ़ाता है ये कला कोई अमर कौशिक से सीखे,यहाँ तारीफ कहानी लिखने वाले की भी की जानी चाहिए जिसे नीरेन भट्ट ने बड़े नायाब अंदाज़ में गढ़ा है। आयुष्मान के अभनय को चार चाँद लगाने में इन दोनों ने नींव की ईंट का काम किया है। फिल्म के बाक़ी किरदार भी अपने रोल में फिट बैठे है चाहे वो परदे के आगे हों या पीछे।


कहानी :

बालमुकुंद शुक्ला यानी कि 'बाला' बचपन में अपने सूंदर केशों और जबरदस्त एटीट्यूड के लिए पहचाने जाते थे। इतना ही नहीं, स्कूल में कानपुर के नन्हे बाला लड़कियों के बीच अपने बालों की स्टाइल से मशहूर थे। छोटे बड़े हर किसी का का मजाक उड़ाना उन पर फ़र्ज़ था। ऐसा कोई मौक़ा उन्होंने कभी चूकने ही नहीं दिया।


फिर समय ने करवट ली और मात्र 25 साल की उम्र में ही बाला के बालों ने उन्हें दग़ा दे दी। नुक्सान कीमती सामान का था इसलिए देखभाल भी युद्ध स्टार पर शुरू हुई। इस दौरान 200 से ज्यादा नुस्खे अपनाए, लेकिन फिर भी कोई हल नहीं मिला। नौबत नकली बालों का सहारा लेने की आ गयी। अब बाल मज़ाक की परिधि के भीतर थे। लतिका त्रिवेदी (भूमि पेडनेकर) जो काले रंग की वजह से बचपन से लोगों का ताना सुनती आईं थी अपने क्लासमेट बाला को बीच-बीच में छेड़ती रहती। इस बीच परी मिश्रा (यामी गौतम) ज़िंदगी में दाखिल होती हैं जो बाला के लिए एक परी की तरह है और अब शुरू होती है कनोरिया बड़बोलेपन के साथ मज़ेदार कहानी। जिसका मज़ा लेने के लिए आपको सिनेमाघर का रुख करना होगा।


गंजे होते आयुष्मान और भूमि के रोल ने फिल्म में ऐसी जान फूंकी है कि दर्शक को अंत तक बांध कर रहती है। वहीं बाला के पिता बने सौरभ शुक्ला, मूछों वाली मौसी लतिका की मां सीमा पहवा और बाला के भाई बने धीरेंद्र कुमार गौतम की एक्टिंग आपका दिल जीत लेगी। फिल्म की कहानी, डायलॉग, स्क्रीनप्ले, म्यूजिक और एक्टिंग जबरदस्त है।





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