सुरक्षा मानकों की बात करें तो प्रोसेस्ड दूध के 10.4 फीसदी नमूने फेल रहे, जो कच्चे दूध (4.8 फीसदी) की तुलना में काफी अधिक है। हालांकि कुल नमूनों में केवल 12 में ही मिलावट पाई गई, जिनमें से ज्यादातर तेलंगाना के थे। एफएसएसएआई के सीईओ पवन अग्रवाल ने शुक्रवार को कहा, लोग समझते हैं कि दूध में मिलावट ज्यादा गंभीर समस्या है, लेकिन इससे बड़ी समस्या दूध का दूषित होना है।
प्रोसेस्ड दूध के 2607 नमूनों में से 37.7 फीसदी नमूनों में फैट, एसएनएफ, माल्टोडेक्सट्रिन और शुगर की मात्रा तय सीमा से ज्यादा मिली। सुरक्षा मानकों पर प्रोसेस्ड दूध के 10.4 फीसदी फेल पाए गए। इनमें एफ्लाटॉक्सिन-एम1, एंटीबायोटिक्स और कीटनाशक पाया गया। कच्चे दूध की तुलना में प्रोसेस्ड दूध में एल्फाटॉक्सिन की मात्रा अधिक पाई गई। विशेषज्ञों के मुताबिक पशु आहार में एफ्लाटॉक्सिन का लंबे समय से इस्तेमाल हो रहा है, जो कि खतरनाक है।
सात फीसदी दूध पीने लायक ही नहीं
एफएसएसएआई ने मई से अक्तूबर 2018 के बीच 1,103 शहरों से 6,432 नमूने लिए थे। इनमें 3825 (59.5 फीसदी) कच्चे दूध और 2607 (40.5 फीसदी) प्रोसेस्ड दूध के हैं। जांच में 5976 नमूने (93 फीसदी) सुरक्षित मिले, जबकि 456 (7.1 फीसदी) नमूनों में कई तरह की मिलावट मिली। इनमें से 368 नमूने (5.7 फीसदी) एफ्लाटॉक्सिन एम-1 नामक रसायन मिला। दो में यूरिया, तीन में डिटर्जेंट पाउडर, छह में हाइड्रोजन ऑक्साइड और एक में न्यूट्रलाइजर के तत्व मिले हैं।
दिल्ली समेत कई राज्यों के सैंपल में रसायन
6432 में से 368 सैंपल एफ्लाटॉक्सिन एम-1 रसायन युक्त मिले हैं। इनमें सबसे ज्यादा 227 पैकेट वाले दूध के सैंपल हैं। तमिलनाडु, दिल्ली, केरल, पंजाब, यूपी, महाराष्ट्र और ओडिशा से लिए सैंपल में ये घातक रसायन मिला है। एंटीबॉयोटिक्स दवाओं की बात करें तो मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, आंध्रप्रदेश और गुजरात के सैंपल में इनकी मौजूदगी मिली।
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