
नयी दिल्ली। देश भर में नागरिकता कानून और प्रस्तावित एनआरसी पर घमासान मचा हुआ है। पूर्वोत्तर से लेकर गुजरात और पंजाब से लेकर तमिलनाडु तक जोरदार प्रदर्शन हो रहे हैं। कई जगह हिंसा हो रही है। कुछ इलाकों में धारा 144 लागू है। इस बीच मोदी सरकार सीएए और एनआरसी से आगे जाकर नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर लाने की सोच रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) ने एनपीआर के लिए कैबिनेट से 3,941 करोड़ रुपये भी मांगे हैं। इसका उद्देश्य देश के नागरिकों का व्यापक पहचान डेटाबेस बनाना है। इस डेटा में लोगों को जनसांख्यिंकी के साथ बायोमेट्रिक जानकारी भी देनी होगी।
नागरिकता कानून और प्रस्तावित एनआरसी की तरह गैर-बीजेपी शासित राज्य एनपीआर का भी विरोध कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो बंगाल में एनपीआर (NPR) को लेकर चल रहे काम को रोक भी दिया है। केरल की वामपंथी दलों की सरकार ने भी एनपीआर (NPR) से संबंधित काम को रोकने का आदेश जारी कर दिया है।
आजादी के बाद 1951 में पहली जनगणना हुई थी। हर 10 साल में होने वाली जनगणना अब तक 7 बार करवाई जा चुकी है। 2021 की जनगणना का काम जोरों से चल रहा है। इसे तैयार करने में तीन साल लगते हैं। तीन चरणों में चलने वाली प्रक्रिया के पहले चरण यानी अगले साल एक अप्रैल 2020 लेकर से 30 सितंबर के बीच केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारी घर-घर जाकर आंकड़े जुटाएंगे। दूसरा चरण 2021 में 9 फरवरी से 28 फरवरी के बीच पूरा होगा तो 1 मार्च से 5 मार्च के बीच संशोधन की प्रक्रिया पूरी कराई जाएगी।
क्या है एनपीआर :
यह देश के नागरिकों का दस्तावेज है और नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों के तहत स्थानीय, उप-जिला, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर बनाया जाता है। कोई भी निवासी जो 6 महीने या उससे अधिक समय से कही रह रहा है तो उसे NPR में अनिवार्य रूप से पंजीकृत कराना होता है। सरकार ने 2010 से नागरिकों की पहचान का डेटाबेस जमा करने के लिए इसकी शुरुआत की. 2016 में सरकार ने इसे जारी किया था।