सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार, प्रमुख ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया कंपनियों को नोटिस जारी किया। इस याचिका में डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर यौन उत्तेजक सामग्री के प्रसारण पर रोक लगाने की मांग की गई है। जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि याचिका एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाती है, लेकिन यह मुख्य रूप से कार्यपालिका और विधायिका के दायरे में आता है। सुनवाई के दौरान जस्टिस गवई ने कहा, "वैसे भी हम पर यह आरोप लगते हैं कि हम विधायिका और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रहे हैं।"

कोर्ट ने केंद्र सरकार के अलावा नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम वीडियो, उल्लू, एएलटीटी, एक्स (पूर्व में ट्विटर), फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और अन्य को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा है। अदालत ने उनसे इस याचिका पर प्रतिक्रिया मांगी है, जिसमें डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर उपलब्ध अश्लील सामग्री के खिलाफ तत्काल नियामक कदम उठाने की मांग की गई है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को सूचित किया कि सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के तहत कुछ नियामक तंत्र पहले से ही लागू हैं। उन्होंने यह भी बताया कि अतिरिक्त नियमों पर विचार जारी है।

मुख्य बिंदु:

यह याचिका पांच याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर की गई है और वकील विष्णु शंकर जैन ने इसका पक्ष रखा। याचिका में ओटीटी और सोशल मीडिया पर सामग्री की निगरानी और नियंत्रण के लिए एक 'नेशनल कंटेंट कंट्रोल अथॉरिटी' के गठन की मांग की गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए कोई निश्चित तारीख तय नहीं की है, लेकिन संकेत दिया कि केंद्र सरकार का विस्तृत जवाब आगे की कार्रवाई को निर्धारित करेगा।

यह मामला भारत के तेजी से बढ़ते डिजिटल मनोरंजन और सोशल मीडिया क्षेत्र में कंटेंट रेगुलेशन को लेकर बढ़ती चिंताओं को उजागर करता है, खासकर नाबालिगों की अश्लील सामग्री तक आसान पहुंच को लेकर।


Find out more:

OTT