छठ पर्व की शुरुआत कार्तिक शुक्ल षष्ठी से शुरू होती हैं और यह चार दिनों तक मनाई जाती हैं| इस पर्व शुरुआत के पहले दिन को नहाय खाय, दूसरे दिन को खरना, तीसरे दिन महिलाएं डूबते सूरज को अर्घ्य देती हैं और फिर चौथे दिन इस पूजा का समापन होता हैं| छठ पर्व के चौथे दिन विधि-विधान से पूजा करके प्रसाद बांटा जाता हैं| बता दें कि इस साल छठ पर्व की शुरुआत 31 अक्टूबर से लेकर 3 नवंबर तक मनाई जाती है, यह उत्तर भारत में बड़े ही धूम-धाम से मनाई जाती हैं| नहाय खाय के दिन व्रती स्नान करके नए वस्त्र धारण करते हैं और फिर सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं, व्रती के भोजन ग्रहण करने के बाद ही घर के अन्य सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं| व्रत के दूसरे दिन यानि खरना के दिन लोग पूरे दिन व्रत रखते हैं, इस शाम को प्रसाद बनाया जाता हैं, इस व्रत में ठेकुआ का ज्यादा महत्व होता हैं| व्रत के तीसरे दिन व्रती डूबते सूरज को अर्घ्य देते हैं और चौथे दिन सूर्योदय के समय सूर्य भगवान की उपासना की जाती हैं, इसके बाद इस व्रत की समाप्ती होती हैं|


छठ पूजा की शुरुआत कैसे हुयी
पुराण के मुताबिक प्रथम मनु प्रियव्रत की कोई भी संतान नहीं थी, संतान प्राप्ति हेतु प्रियव्रत ने कश्यप ऋषि से संतान प्राप्ति हेती उपाय पूछा, इस पर महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ करने को कहा| इस यज्ञ से प्रियव्रत की पत्नी मालिनी को एक पुत्र हुआ लेकिन वह मृत पैदा हुआ था, मृत पुत्र को देखकर पति-पत्नी दोनों रोने लगे, इसी दौरान कुछ ऐसी घटना घटी, जिसे देखकर सभी आश्चर्यचकित रह गए|
दरअसल एक ज्योतियुक्त विमान से एक देवी प्रकट हुयी और उन्होने कहा कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री हूँ और मैं संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाली की इच्छा पूरी करती हूँ| इतना कहने के बाद देवी ने प्रियव्रत के मृत पुत्र को स्पर्श किया तो वह जीवित हो गया| ऐसे में प्रियव्रत ने देवी की कई प्रकार की स्तुति की, ऐसे में देवी ने कहा कि आप ऐसी व्यवस्था करे पृथ्वी लोक में हमारी सदा पूजा हो| तब राजा ने छठ पूजा की शुरुआत की, इसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त में भी किया गया हैं|


कौन हैं छठी मईया
वेदों के मुताबिक छठी मईया को उषा देवी के नाम से भी जाना जाता हैं| छठी मईया के बारे में कहा जाता हैं कि वो सूर्यदेव की बहन हैं और उनकी पूजा करने व गीत गाने से सूर्य भगवान प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएँ पूरी करते हैं|

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