
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने डिजिटल KYC को समावेशी बनाने के लिए कुल 20 दिशा-निर्देश जारी किए हैं। यह फैसला उन व्यक्तियों की परेशानियों के मद्देनज़र आया है, जो दृष्टिहीनता या चेहरे पर विकृति के कारण KYC प्रक्रिया में चेहरा पहचानने या सिर हिलाने जैसी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाते।
अदालत की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:
🔹 डिजिटल बहिष्करण पर चिंता:
अदालत ने कहा कि ऐसी डिज़ाइन खामियाँ इन व्यक्तियों को बैंक खाता खोलने, सरकारी योजनाओं का लाभ लेने या अपनी पहचान सत्यापित करने से वंचित कर देती हैं, जिससे वे डिजिटल व्यवस्था से बाहर हो जाते हैं।
🔹 डिजिटल पहुंच जीवन का अधिकार:
न्यायमूर्ति महादेवन ने कहा, "डिजिटल पहुंच जीवन के अधिकार का एक अनिवार्य हिस्सा है," और सभी नागरिकों को ध्यान में रखते हुए "सार्वभौमिक डिज़ाइन" अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
🔹 डिजिटल खाई पर चिंता:
पीठ ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों, वरिष्ठ नागरिकों, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों, भाषाई अल्पसंख्यकों और विकलांगों को अब भी डिजिटल विभाजन का सामना करना पड़ता है। ऐसे में जीवन के अधिकार की व्याख्या आधुनिक तकनीकी वास्तविकताओं के अनुरूप की जानी चाहिए।
🔹 सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य की यह संवैधानिक जिम्मेदारी है कि सभी डिजिटल सेवाएं समावेशी और सुलभ हों, जिससे कोई भी नागरिक किसी भी प्रकार की अक्षमता के कारण डिजिटल सेवाओं से वंचित न हो।
🔹 सरकारी और फिनटेक प्लेटफार्म होंगे बाधारहित:
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि सभी सरकारी वेबसाइटें, शैक्षिक पोर्टल और वित्तीय तकनीकी प्लेटफार्म पूरी तरह सुलभ बनाए जाएं।
यह फैसला न केवल डिजिटल अधिकारों बल्कि विकलांगता समावेशन की दिशा में भी एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है, जो भारत में तकनीक आधारित समानता और समावेशन के नए मानदंड स्थापित करेगा।