प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर औपनिवेशिक मानसिकता वाली ताकतें भारत की विकास गाथा को बाधित कर रही हैं। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित एक संविधान दिवस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि उपनिवेशवाद की समाप्ति के वर्षों बाद भी एक औपनिवेशिक मानसिकता मौजूद है, और ये ताकतें विकासशील देशों के विकास के मार्ग में बाधा डाल रही हैं।

संविधान के प्रति समर्पित सरकार, विकास में भेदभाव नहीं करती और हमने दिखाया है कि यह एक वास्तविकता है कि आजादी के दशकों बाद भी, देश में लोगों के एक बड़े वर्ग को बहिष्कार का शिकार होना पड़ा। करोड़ों लोग जिनके घर में शौचालय तक नहीं था, जो बिजली के अभाव में अंधेरे में रह रहे थे, जिनके पास पानी नहीं था।

उनकी समस्याओं को समझने में, उनके जीवन को आसान बनाने के लिए उनके दर्द को समझने में निवेश करना, मैं इसे ही संविधान का वास्तविक सम्मान मानता हूं। मैं इस बात से संतुष्ट हूं कि संविधान की इसी भावना के अनुरूप बहिष्करण को समावेश में बदलने के लिए जोरदार अभियान चल रहा है।

यदि हम अन्य देशों से तुलना करें, तो भारत के समान समय के आसपास स्वतंत्र होने वाले राष्ट्र आज हमसे बहुत आगे हैं। इसका मतलब है कि अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। हमें मिलकर लक्ष्य तक पहुंचना है। सैकड़ों वर्षों की निर्भरता ने भारत को कई समस्याओं में धकेल दिया। भारत जिसे कभी सोने की चिड़िया कहा जाता था, गरीबी, भुखमरी और बीमारियों से पीड़ित था। उस पृष्ठभूमि में, संविधान ने हमेशा राष्ट्र को आगे बढ़ाने में हमारी मदद की।

हमारे संविधान निर्माताओं ने हमें आजादी के लिए जीने और मरने वाले लोगों द्वारा देखे गए सपनों के आलोक में और भारत की हजारों साल लंबी महान परंपराओं को संजोते हुए संविधान दिया। इस संविधान पर हमे गर्व करने की जरूरत है, पीएम मोदी ने कहा।

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