मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि यह पूरा कृत्य "पूर्वनियोजित" लगता है, क्योंकि यह घटना एक लंबे सप्ताहांत के दौरान हुई जब न्यायपालिका उपलब्ध नहीं थी। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "प्रथम दृष्टया यह पूर्व नियोजित प्रतीत होता है। तीन दिन की छुट्टी आने वाली थी, और आपने इसका फायदा उठाया।"
कोर्ट ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए 3 अप्रैल को पेड़ों की कटाई पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। तेलंगाना सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि अब साइट पर कोई गतिविधि नहीं हो रही है और सरकार कोर्ट के आदेशों का "शब्दशः पालन" करेगी।
हालांकि, न्यायमित्र (एमिकस क्यूरी) के रूप में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता के परमेश्वर ने फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें उपग्रह चित्रों से पता चला कि 104 एकड़ की उस जमीन में से लगभग 60% हिस्सा मध्यम से घने जंगलों में आता था।
अदालत की अवमानना की चेतावनी
कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि सरकार सुधारात्मक कदम नहीं उठाती, तो वह अवमानना कार्यवाही का सामना करेगी। कोर्ट ने कहा, “अगर अवमानना से बचना है तो जंगल को पुनः बहाल करने का निर्णय लें। अगर आप इसे सही ठहराने की कोशिश करेंगे, तो मुख्य सचिव समेत सभी अधिकारी मुसीबत में पड़ेंगे।”
आईटी विकास बनाम पारिस्थितिकी
राज्य सरकार ने दावा किया कि आईटी विकास और पारिस्थितिकी संरक्षण दोनों साथ चल सकते हैं, लेकिन कोर्ट ने साफ किया कि मुद्दा "विकास संतुलन" का नहीं बल्कि "हजारों पेड़ों की कटाई का है, जो लंबी छुट्टियों का फायदा उठाकर की गई।"
छात्र कार्यकर्ताओं के लिए अलग याचिका का सुझाव
सुनवाई के दौरान एक वकील ने बताया कि जंगल बचाने की कोशिश करने वाले छात्रों पर एफआईआर दर्ज की गई है। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा कार्यवाही सिर्फ जंगल की सुरक्षा को लेकर है और छात्रों को अलग याचिका दाखिल करनी चाहिए।
अगली सुनवाई 23 जुलाई को होगी, और कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह 100 एकड़ जंगल को बहाल करने की स्पष्ट योजना पेश करे — जिससे उच्च अधिकारियों को "कठोर कार्रवाई" से बचाया जा सके।
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