शिव भक्तों के लिए शिवरात्रि या महाशिवरात्रि का दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन वो अपने आराध्य भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते है। क्या आपको पता है कि शिवरात्रि प्रत्येक महीने आती है, जी हां बिल्कुल। हर माह की चतुर्दशी को शिवरात्रि होती है और शिवपुराण के अनुसार फाल्गुन माह की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि होती है। महाशिवरात्रि के दिन भक्तगण शिव का व्रत रखते है इसके अलावा शिवलिंग पर जल चढ़ाते है और भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करते है। अब हम आपको शिवरात्रि और महाशिवरात्रि के बीच के अंतर को बताते है।

 

 

क्या है शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में अंतर
जैसे हमने आपको ऊपर बताया था कि शिवरात्रि हर माह आती है, शिवरात्रि हर महीने की चतुर्दशी को आती है और महाशिवरात्रि फाल्गुन महीने की चतुर्दशी को। इस तरह साल में कुल मिलाकर 12 शिवरात्रि पड़ती है और इन सभी शिवरात्रि में फाल्गुन माह की शिवरात्रि का ज्यादा महत्व है इसलिए उसे महाशिवरात्रि कहते है। कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन उज्जैन के सुप्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर में लोग दीपस्तंभ लगाते है ताकि भक्तगण शिवजी के अग्नि रूपी अनंत लिंग का अनुभव कर सके।

 

महाशिवरात्रि से जुड़ी कथा


धर्म पुराणों के अनुसार महाशिवरात्रि के शुभ दिन पर भगवान शिव और माँ शक्ति का विवाह हुआ था। परंतु शिव पुराण के एक अध्याय के अनुसार सृष्टि की सरंचना के समय ब्रह्मा देव और विष्णु जी मे श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया। उनके झगड़े के बीच एक विशाल शक्ति प्रकट हुई जिसके तेज को देखकर दोनो देव चकित हो गए।

 

इस दिन से हुआ शुरू महाशिवरात्रि का पर्व
जो अग्नि स्तंभ प्रकट हुई थी उसके बारे मे जानने के लिए श्रीविष्णु जी ने वराह का रूप धारण किया और पाताल की तरफ गए और ब्रह्मा जी ने हंस का रूप लेकर आसमान का रुख किया। दोनो को बहुत कोशिश के बाद भी कुछ पता नही चला।।उसके बाद उस अग्नि स्तंभ से भगवान शिव ने दोनों देवो को दर्शन दिए और फिर उसी दिन से शिवरात्रि का पर्व मनाया जाने लगा।

 

बेल-पत्र से संबंध और शिवशंकर को क्यों कहा गया है नीलकण्ठ
बात समुद्र-मंथन की है। जब देवताओं और राक्षस के द्वारा समुद्र-मंथन किया गया तो सबसे पहले उसमें से हलाहल नाम का विष निकला और उस विष में इतनी गर्मी थी कि उस विष के प्रभाव से जीव-जंतु मरने लगे और सृष्टि के लिए बहुत बड़ा संकट खड़ा हो गया था।

 


सृष्टि को बचाने के लिए महादेव ने वो सारा विष खुद पी लिया और विष पीने के बाद शिव का कंठ नीला हो गया। नीला कंठ होने की वजह से शिव जी को नीलकंठ भी कहा जाने लगा।

 


विष के कारण शिवजी के शरीर मे पानी की कमी होने लगी और मस्तिष्क गर्म हो गया। यह देख कर देवताओं ने महादेव के मस्तिष्क पर बेल-पत्र चढ़ाए और उन पर जल चढ़ाया। बेल-पत्र की तासीर ठंडी होने के कारण महादेव को तुरंत शीतलता महसूस होने लगी। बेल-पत्र चढ़ाने से भगवान महादेव को काफी आराम मिला और वो प्रसन्न हो गए। तभी से शिव शंकर को बेल-पत्र चढ़ाने का महत्व शुरू हो गया।

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