हिन्दू धर्म मे किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले शुभ मुहुर्त देखा जाता है और शुभ मुहूर्त होने पर ही कार्य सम्पन्न किये जाते है। अगर आप किसी शुभ कार्य को करने की सोच रहे है तो जल्द ही उस कार्य को पूर्ण कीजिये क्योंकि इस माह के अंत से होलाष्टक लगने वाला है और हिन्दू धर्म के अनुसार होलाष्टक की अवधि के दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, ग्रह-प्रवेश या अन्य कोई भी मांगलिक कार्यक्रम इस आवधी के दौरान नही किये जाते।

 

होलाष्टक क्या है?
सबसे पहले होलाष्टक का अर्थ समझते है, होलाष्टक शब्द दो शब्दों के मेल से बना है। होला एवं अष्टक, होला मतलब होली और अष्टक मतलब आठ। होलाष्टक की अवधि 8 दिन की होती है और यह होली से 8 दिन पहले शुरु होता है। जैसे कि हम सब जानते है कि होली का त्यौहार हिन्दू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन माह में आती हैं और इस वर्ष यानी 2020 में होली का त्यौहार 9 मार्च और 10 मार्च को मनाया जाएगा। 9 मार्च को होलिका दहन होगा और 10 मार्च को रंगो से इस उत्सव को मनाया जायेगा।

 

देखें विडियो : Holashtak 2020 : इसी महीने निपटा लें सभी शुभ कार्य, लगने जा रहा है होलाष्टक

 

 

इस वर्ष होलाष्टक 3 मार्च से शुरु होकर होलिका दहन अर्थात 9 मार्च तक रहेगा। अगर तिथि की बात करे तो होलाष्टक फाल्गुन माह की शुक्ल अष्टमी से शुरु होगा और होलिका दहन अर्थात पूर्णिमा पर समाप्त होगा। इसी कारण 3 मार्च से लेकर 9 मार्च तक कोई भी शुभ कार्य नही किया जा सकेगा।

 

होलाष्टक में क्या करें क्या ना करें
जैसा कि हम पहले ही यह पढ़ चुके है कि होलाष्टक में कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता, इसलिए यह भी जानना जरूरी है कि होलाष्टक में क्या-क्या काम नहीं करने चाहिए। होलाष्टक में विवाह, बच्चे का मुंडन, नामकरण, ग्रह-प्रवेश और अन्य किसी भी तरह के शुभ कार्य नही करने चाहिए। इसके अलावा इस अवधि में कुछ भी नया समान नहीं खरीदे और घर-जमीन, वाहन, सोना-चांदी और रत्न भी नही लेने चाहिए।


हिन्दू धर्म मे दान-पुण्य को काफी शुभ फल देने वाला माना जाता है। इसलिए होलाष्टक के दौरान दान-पुण्य करना चाहिए। दान करने से भगवान की कृपा-दृष्टि बनी रहती है होलाष्टक में भगवान की पूजा-ध्यान में समय व्यतीत करना चाहिए।

 

होलाष्टक से जुड़ी कथा
पुराणों के अनुसार बताया जाता है कि राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को भगवान नारायण की पूजा करने से रोकने के लिये लगातार आठ दिन तक प्रताड़नाएं दी पर प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। यही आठ दिन होलाष्टक कहलाये। फिर हिरणकश्यप ने अपनी बहन होलिका जिसको यह वरदान प्राप्त था कि उसे आग भी नही जला सकती, से कहा कि वो प्रहलाद को अपनी गोद मे बैठाकर अग्नि में प्रवेश कर ले ताकि प्रहलाद अग्नि में जल जाए परन्तु भगवान नारायण की कृपा से प्रहलाद को कुछ भी नही हुआ और होलिका जिसे वरदान प्राप्त था वो जल कर मर गयी।

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