लोकसभा सचिवालय द्वारा एक पुस्तिका के प्रकाशन पर विवाद के बीच बिड़ला की टिप्पणी आई, जिसमें शर्मिंदा, जुमलाजीवी, तानाशाह, दुर्व्यवहार, विश्वासघात, भ्रष्ट, नाटक, पाखंड और अक्षम असंसदीय अभिव्यक्ति के रूप में जैसे शब्दों को सूचीबद्ध किया गया था। किसी भी शब्द पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। सदस्य अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं। कोई भी उस अधिकार को नहीं छीन सकता है, लेकिन यह संसद की मर्यादा के अनुसार होना चाहिए।
बिड़ला ने कहा कि संसदीय प्रथाओं से अनजान लोग हर तरह की टिप्पणियां कर रहे हैं और कहा कि विधायिकाएं सरकार से स्वतंत्र हैं। उन्होंने असंसदीय समझे जाने वाले शब्दों और अभिव्यक्तियों की सूची संकलित करने वाली पुस्तिका के विमोचन का जिक्र करते हुए कहा, यह 1959 से जारी एक नियमित अभ्यास है। बिड़ला ने कहा कि निष्कासन के लिए चुने गए शब्दों का इस्तेमाल सत्ता पक्ष के सदस्यों के साथ-साथ विपक्ष ने भी किया है।
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