नयी दिल्ली। महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़ी शिवसेना नतीजे आने के बाद मुख्यमंत्री पद पर '50-50 फॉर्मूले' की अपनी मांग पूरी न होता देख एनडीए से अलग हो गई और इस कारण बीजेपी राज्य में सत्ता में वापसी करने से चूक गई। इस बीच, किसी भी दल के पास बहुमत न होने के कारण महाराष्ट्र में मंगलवार को राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। बहरहाल, 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ केंद्र में सरकार बनाने के बाद बीजेपी को महाराष्ट्र में पहला झटका लगा और देखा जाए तो इसका असर केंद्र और बिहार सरकार में शामिल उसके अन्य सहयोगी दलों पर भी पड़ा है।


बिहार में विधानसभा चुनाव अगले साल होने हैं लेकिन झारखंड में हो रहे चुनाव के बहाने नीतीश कुमार और चिराग पासवान ने बीजेपी पर दबाव बनाने के संकेत दे दिए हैं। दरअसल, झारखंड विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी अकेले चुनाव मैदान में उतरी है। दोनों पार्टियों ने बीजेपी के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे हैं।


वहीं, दिल्ली में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में भी जेडीयू अकेले उतरेगी। सहयोगी दलों का इस तरह का रवैया साफ तौर पर दर्शाता है कि वह बीजेपी पर दबाव बनाना चाहती हैं। इससे यह भी समझा जा सकता है कि बिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी के बीच सीट शेयरिंग का फॉर्मूला आसानी से हल नहीं होने जा रहा।


दरअसल, केंद्र में मोदी सरकार की वापसी के बाद जेडीयू ने 'आनुपातिक प्रतिनिधित्व’ का हवाला देते हुए कैबिनेट में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया था। इसके साथ ही जेडीयू पहले से ही कहते आ रही है कि बिहार में उसकी हैसियत 'बड़े भाई' की है यानी चुनाव के दौरान वह ज्यादा से ज्यादा सीटों पर दावेदारी करेगी। वहीं, जेडीयू के इस रवैये से एलजेपी भी अपने तेवर दिखाएगी और दोनों पार्टियां मिलकर बीजेपी से ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल कर अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारेंगी।


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