कहते हैं कि पूजा-पाठ में तांबे के पात्रों का उपयोग करने से शुद्धता बनी रहती है। अशुद्ध ढंग से पूजा होने पर देवी-देवता के नाराज होने की मान्यता है। लेकिन तांबे के पात्र पूजा में अशुद्धता नहीं आने देते हैं। इसके अलावा आपको ये भी बता दें कि इसके पीछे एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है जो कि बेहद ही सटिक है, दरअसल माना जाता है कि तांबे के बर्तन में पानी पीने से स्वास्थ्य लाभ मिलता है। तांबे के बर्तन में पानी के साथ तुलसी के पत्ते रखे जाते हैं।
इसके बाद इस पानी को पूजा-पाठ में प्रसाद के रूप में वितरीत किया जाता है। इस पानी को फेफड़े के लिए काफी अच्छा माना गया है। वहीं ये बात भी सच है कि तुलसी मिले पानी को देवी-देवता को भोग के रूप में भी चढ़ाया जाता है। इससे देवी-देवता के शीघ्र प्रसन्न हो जाने की बात कही गई है। कहा जाता है कि तांबा जहां भी होता है वहां नकारात्मक ऊर्जा का संचार नहीं होता है। साथ ही साथ तांबे के बर्तन में पानी पीना स्वास्थ्य के लिहाज से भी अच्छा माना जाता है।
वहीं इसके पीछे हमारे शास्त्रों में एक धार्मिक कहानी का भी वर्णन किया गया है जिसमें बताया गया है कि प्राचीन समय में गुडाकेश नाम का एक राक्षस हुआ करता था, राक्षस होने के बावजूद वह भगवान श्री विष्णु का अनन्य भक्त था, भगवान को प्रसन्न करने के लिए वह घोर तपस्या भी करता था। एक बार राक्षस की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर श्री नारायण ने प्रकट होकर उसे वरदान मांगने को कहा, तब राक्षस गुडाकेश ने वरदान में मांगा कि हे प्रभु मेरी मृत्यु आपके सुदर्शन चक्र से ही हो मृत्यु के बाद मेरा पूरा शरीर तांबे का हो जाये और वह तांबा अत्यंत पवित्र धातु बन जाये। फिर उसी तांबे के कुछ पात्र बन जाये जिनका उपयोग आपकी पूजा में हमेशा होता रहे, एवं जो भी इन पात्रों का उपयोग आपकी पूजा में करें, उनके उपर आपकी कृपा बनी रहे।
कहा जाता है कि राक्षस गुडाकेश के द्वारा मांगे गये वरदान से भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न हो सुदर्शन चक्र से राक्षक के शरीर के कई टुकड़े कर दिए, जिसके बाद गुडाकेश के शरीर के सभी भागों से पवित्र धातुओं का निर्माण हुआ, यही कारण है कि भगवान की पूजा के लिए हमेशा तांबे के बर्तनों का ही प्रयोग किया जाता है।
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