हैदराबाद। आंध्र प्रदेश सरकार ने आईएएस अधिकारी डॉ. कृतिका शुक्ला और आईपीएस अधिकारी एम दीपिका को विशेष अधिकारी के पद पर नियुक्त किया है। इन अधिकारियों को आंध्र प्रदेश में दिशा अधिनियम 2019 लागू करने के लिए इस पद पर नियुक्त किया गया है। 

 
डॉ. कृतिका शुक्ला वर्तमान में महिला विकास और बाल कल्याण विभाग में निदेशक के पद पर नियुक्त हैं। वहीं, आईपीएस अधिकारी एम दीपिका एएसपी (प्रशासन) के पद पर कुरनूल में नियुक्त हैं। इनका स्थानांतरण कर उन्हें दिशा विशेष अधिकारी के पद पर नियुक्त कर दिया गया है। इस विधेयक के तहत दुष्कर्म और सामूहिक दुष्कर्म करने वाले अपराधियों को 21 दिनों के अंदर ट्रायल पूरा करके मौत की सजा दी जा सकेगी। इसके अनुसार ऐसे मामलों में जहां संज्ञान लेने लायक साक्ष्य उपलब्ध हों, उसकी जांच सात दिनों में और ट्रायल को 14 कार्यदिवसों में पूरा करना होगा।

 
इस विधेयक ने फैसला सुनाने की समयसीमा को मौजूदा चार महीने से घटाकर 21 दिन कर दिया है। इस कानून में भारतीय दंड संहिता की धारा 354(ई) और 354 (एफ) को भी रखा गया है। 354 (एफ) धारा में बाल यौन शोषण के दोषियों के लिए दस से 14 साल तक की सजा का प्रावधान है। अगर मामला बेहद गंभीर और अमानवीय है तो उम्र कैद की सजा भी दी जा सकती है। सोशल या डिजिटल मीडिया के जरिए होने वाले शोषण के मामले में आरोपी को पहली बार दो साल और दूसरी बार चार साल की सजा दी जा सकती है।


हैदराबाद में 27 नवंबर को एक महिला पशु चिकित्सक के साथ चार हैवानों ने दरिदंगी के बाद हत्या करके, शव को आग लगा दी थी उसे लोगों ने दिशा नाम दिया गया था। उसकी पंक्चर स्कूटी को ठीक करने में मदद का बहाना करके आरोपियों ने उसका अपहरण किया और फिर हैवानियत की। अगले दिन महिला का अधजला शव राष्ट्रीय राजमार्ग-44 पर शादनगर के पास एक अंडरपास में मिला था। जांच से पता चला था कि आरोपियों ने उसकी स्कूटी पंक्चर करके उसके अपहरण की योजना बनाई थी।


भारत सरकार ने नेशनल रजिस्ट्री ऑफ सेक्शुअल ऑफेंडर्स का एक डाटाबेस शुरू किया था जो डिजिटाइज्ड नहीं है और न ही लोग इसे देख सकते हैं। वहीं दिशा विधेयक में राज्य सरकार एक रजिस्टर बनाएगी जो इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफार्म होगा और इसे वूमेन एंड चिल्ड्रन ऑफेंडर्स रजिस्ट्री नाम दिया गया है। यह रजिस्ट्री सार्वजनिक होगी और कानूनी एजेंसियां इसे देख सकेंगी।


वर्तमान में दुष्कर्म के आरोपी को एक निश्चित जेल की सजा दी जाती है जो बढ़कर उम्र कैद या मौत की सजा तक हो सकती है। दिशा विधेयक के तहत दुष्कर्म के मामलों में जहां पर्याप्त निर्णायक सबूत होंगे उनमें अपराधी को मौत की सजा दी जाएगी। यह प्रावधान भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376 में संशोधन करके दिया गया है।


निर्भया अधिनियम, 2013 और आपराधिक संशोधन अधिनियम, 2018 के अनुसार फैसला सुनाने की समयसीमा चार महीने है। जिसमें दो महीने में जांच और दो महीने में ट्रायल पूरा करना होगा। वहीं दिशा विधेयक के अनुसार दुष्कर्म के मामलों में जिनमें निर्णायक सबूत हों, उनमें अपराध की तारीख से 21 दिनों के कार्यदिवसों में फैसला सुनाया जाएगा। जांच को सात कार्यदिवसों में और ट्रायल को 14 दिनों में पूरा करना होगा। इसके लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 173 और धारा 309 में संशोधन किया गया और अधिनियम में अतिरिक्त धाराएं लागू की गईं।

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